लेख डिस्ट्रिक्ट के विस्मययुक्त स्थल
विस्मययुक्त एवं रहस्यमयी-मेरे सम्मुख व्तिृत विशाल हरे-भरे पठार पर पत्थरों का सर्कल और चारों ओर फैले बर्फ से ढकी पर्वत शृंखलाओं को देखकर, केवल यही दो शब्द मस्तिष्क में आए। हम 4500 वर्ष पूर्व बने कासल रिंग-स्टोन-सर्कल (पत्थरों का गोलाकार) जो इंग्लैंड के लेख डिस्ट्रिक्ट क्षेत्र में स्थित है। कहा जाता है कि रहस्मय रूप से खगोल विद्या (ऐस्ट्रोनोमी) से रचित स्टोन सर्कल्स में से कासल रिंग यूरोप का सर्वाधिक प्राचीन स्टोन सर्कल है। यह एक प्रसिद्ध पर्याटक स्थल है क्योंकि इसका मार्ग एवं प्रवेश अन्यों से सुगम है।
स्टोन सर्कल में रेखागणित और खगोल विद्या का उपयोग
हाल ही में हुए अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि प्राचीन कासल रिंग स्टोन सर्कल की रचना में रेखा गणित (जोमैट्री) का उपयोग किया गया था जो संकेत देता है कि इन्हें सिद्ध गणितिज्ञों ने बनाया होगा। साथ ही में स्टोन सर्कल का संबंध पैगन समाज (विधर्मी) से भी है। सूर्य से अलाइनमेन्ट (सरेखण) के कारण यहां वर्ष में दो बार सोलसटिस (ग्रीष्म अयनांत-21 जून और शीत कालीन अयनांत-22 दिसंबर) के समय प्राचीन बृटैन के पादरी डरूडस स्टोन सर्कल पर एकत्रित हो अनुष्ठानों में भाग लेते हैं। यह सब जानकर हमें पूर्व देखे कुछ विज्ञापन समझ आए जिनमें होटल्स ने सूर्य उदय पर विशेष नाश्ता, फिर डरूडस (पादरी) का अनुष्ठान विषयक संगीत और कासल रिंग स्टोन सर्कल पर टॉक का सम्पूर्ण प्रोग्राम छपा था।
स्टोन सर्कल में प्रवेश
स्टोन सर्कल की दिशा में जाते हुए हमें बाईं ओर पत्थरों का आयताकार ढांचा दिखा जिसे सेनचुरी नाम दिया गया था। इसका निर्माण स्टोन सर्कल के निर्माण के सदियों बाद किया हो सकता है। सेनचुरी का उपयोग विशेष अनुष्ठानों के लिए या साधारण व्यापार स्थल के रूप में भी किया जाना हो सकता है। शीघ्र ही हम जादुई स्टोन सर्कल में प्रविष्ट हुए और प्रत्येक विशाल पत्थर को छूते हुए सम्पूर्ण गोलाकार चक्कर लगाया।
महारानी विक्टोरिया युग में स्टोन सर्कल
इस दौरान फोटोग्राफी करते हुए सहज ही दिखाई पड़ा कि अनेक पत्थर ऊपरी सतह या कोने से काटे या तोड़े गए थे। ऐसा पूर्व में; यहां आए पर्यटकों या आगंतुकों ने किया जो इन पत्थर के टुकड़ों को शुभ चिन्ह के रूप में या सूवीनियर (यादगार वस्तु) समझ कर अपने साथ ले जाते थे। ऐसी गतिविधियां महारानी विक्टोरिया युग में बहुत अधिक घटी। सतर्क पुरातत्वज्ञों के हस्तक्षेप से 1882 में कासल रिंग स्टोन सर्कल को विशिष्ट प्राचीन स्थल का दर्जा घोषित करवाया गया और भविष्य की तोड़-फोड़ से बचाया गया। 1913 में इंग्लैंड की नैशनल ट्रस्ट ने इइसे संरक्षित पुरातत्व स्थल का विशेष दर्जा दिया।
स्टोन सर्कल की पुन: खोज
यहां आने से पूर्व मैंने पढ़ा था कि स्टोन सर्कल पर अनेक अनुसंधानात्मक अध्ययन चल रहे हैं। यह अध्ययन 18वीं शताब्दी में आरंभ हुए जब श्री विलियम स्टूकले ने स्टोन सर्कल की पुन: खोज की और अज्ञात अंधेरों से निकालकर उसे फिर उज्ज्वल किया।
श्री स्टूकले स्वयं एक ऐंटिक्वेरियन (बहुत प्राचीन इतिहास जानने वाले) थे और फिर 18वीं और 19वीं शताब्दी के अनेक ऐंटिक्वेरियन्स ने भी इस पर नवीन विचार-विमर्श और खोजें कीं। स्टूकले ने अपने देश बृटेन में भ्रमण कर अनेक प्रगैतिहासिक (पृहिस्टोरिक) एवं प्राचीन (हिस्टोरिक) स्थलों को खोजा और उन खोजों को रिकार्ड किया। उन्होंने अपने प्रेक्षण में एक अन्य स्टोन सर्कल के विषय में भी लिखा जो कासल रिंग स्टोन सर्कल के निकट था और आजतक वह रहस्यमयी सर्कल कहीं नहीं मिला।
कासल रिंग स्टोन सर्कल – पर्यटक स्थल
स्टोन सर्कल पर चलते हुए और आसपास अन्य पर्यटकों को देखकर, विचार आए कि श्री स्टूकले की खोज से यह पर्यटक स्थल में परिवर्तित हुआ पर ऐसा भी नहीं था कि 18वीं शताब्दी से पूर्व इसके विषय में कोई न जानता हो। पुराने समय से ही स्टोन सर्कल से जुड़ी अनेक पौराणिक और लोक कथाएं प्रचलित हैं। 16वनीं शताब्दी में भी इसके विषय में लिखा गया था। भिन्नता केवल इतनी थी कि भूतकाल में पर्यटक कागज, चमड़े आदि के नक्शे (मैप) लेकर पैदल या घोड़े पर यहां आते थे और आज हम गूगल मैप (इंटरनेट) के सहारे सरलता से कार से आए थे।
कासल रिंग स्टोन सर्कल और प्रसिद्ध लेखक
वहां घूमते हुए एक रोचक जानकारी मली कि 1799 में प्रख्यात अंग्रेजी कवि विलियम वर्डसवर्थ, उनकी बहन लेखिका डोरोथी-वर्डसवर्थ और दोस्त कवि सेमुऐल कोलरिज भी इन रस्यमयी रोमांचक स्टोन सर्कल को देखने आए थे। वे निकटतम विंडरमियर नगर में निवास करते थे।
इसके अतिरिक्त अनेक महत्वपूर्ण लेखक यहां आए और उन्होंने नाटकीय रहस्यवादी कासल रिंग का उल्लेख अपनी पुस्तकों में भी किया, विशेषकर 19वीं शताब्दी में ऐसा हुआ। तभी तो लेखकों ने इसे ‘डरूडिकल सर्कलÓ का नाम दिया (प्राचीन अनुष्ठानों का पालन करने वाले बृटेन के पादरी-डरूडस)। चारों दिशाओं से पर्वत-शृंखलाओं से घिरा कासल रिंग स्टोन सर्कल न जाने कितने हजार वर्षों से रहस्य के परदों से ढका है जो प्रत्येक लेखक और कवि की जिज्ञासा का कारण है।
ऐरा-फोर्स वॉटरफाल
अस्पष्ट अतीत काल वाले स्टोन सर्कल से हमने ऐरा-फोर्स वाटर फाल (प्रपात) की ओर जाने का निर्णय लिया। यह वॉटरफाल सुंदर लेख डिसट्रिक की उलसवाटर झील पर स्थित है जिसे ‘इंग्लैंड की सर्वाधिक सुंदर झील’ माना जाता है। वहां जाकर हमें निराशा हुई कि 20 फीट का प्रपात (वॉटरफाल) जो नदी ऐरा द्वारा बनता है, पूर्णत: सूखा था क्योंकि उस वर्ष बहुत कृत्रिम वर्षा हुई थी। यहां से हमें ऐरा शब्द का अर्थ पता चला कि इंग्लैंड की प्राचीन भाषा शैली नौर्स में इसका अर्थ है ‘नदी का कंकड़ों वाला किनारा’। ‘फोस’ का अर्थ है-वॉटरफाल या प्रपात।
ऐरा फोर्स वॉटरफाल एवं कवि वर्डसवर्थ
फिर हम कुछ आगे चलकर अति सुंदर उलसवाटर झीील का दृश्य देखने गए। यह भी महत्वपूर्ण स्थल था क्योंकि कवि वडर्सवर्थ ने अपनी प्रसिद्ध कविता डैफोडिल्स लिखने का प्रथम विचार यहां किया था। जब उन्होंने नदी ऐरा एवं झील उलसवॉटर के मिलन-स्थल पर अनेक पीले मनमोहक पुष्पों-डैफोडिल्स को उगते देखा। वे अक्सर यहां आया करते और अन्य तीन कविताओं में भी इस स्थल के विषय में लिखा है।
कर्कस्टोन पास-पहाड़ी मार्ग
इसके बाद, हम चौड़े घुमावदार पर्वती मार्ग से ऊपर की ओर जाते हुए काक स्टोन पास पर पहुंचे जो इंग्लैंड की कम्बरियन पर्वत शृंखला का सर्वाधिक ऊंचा और मोटरेबल दर्रा है। हमारी दोनों ओर घास से ढके हरे-पर्वत थे और ट्रैफिक बहुत कम था। दर्रा की ऊंर्चा लगभग 1500 फीट है और यहां पर पड़ाव के रूप में कर्क स्टोन इन या सराय भी है। कर्कस्टोन पास से दोनों ओर प्राकृतिक सौंदर्य की अधिकता है। हम रोथे नदी घाटी की ओर आए थे और आगे सुंदर ऐम्बलसाइड नगर था। हमें बताया गया कि कुछ दूरी पर एक पत्थर है जिसका नाम कर्क स्टोन है जिससे इस क्षेत्र का नाम अवतरित है। पत्थर का आकार और परछाईं चर्च (गिरिजा घर) के टॉवर समान है और बृटैन की प्राचीन भाषा नोर्स में कर्क का अर्थ है-चर्च।
कर्कस्टोन पास इन
वापिस चलते हुए, हम कुछ समय के लिए कर्कस्टोन-इन पर रुके जिसका निर्माण 1496 ऐ.डी. में हुआ था। मीलों तक एकांत खड़ी गूढ़े स्लेटी पत्थरों की बनी इन 15वीं शताब्दी में एक ईसाई मठ थी। आज यह इंग्लैंड की सर्वाधिक ऊंचाई पर बनी पबस में से तीसरे नम्बर पर है। इन की सजावट एवं इंटीरियर सभी मध्यकालीन युग के हैं-नीची लकड़ी की बीमस वाली छत से लेकर फायर हर्थ तक। वहां का मेन्यू अनोखा था जिसमें मसालेदार दक्षिण भारतीय भोजन सम्मिलित था। स्टाफ से बातचीत पर ज्ञात हुआ कि यह क्षेत्र स्लेट पत्थर की खानों के रूप में प्रसिद्ध था जो 450 मिलियन वर्ष पूर्व ज्वालामुखी संबंधित चट्टानों के डिपोसिट से बनी थी। यहां पर लेड और कॉपर धातुओं की माइनिंग की जाती थी। स्टोन खान स्थल को देखकर हमने अपने दिवस टूर का समापन किया।
जब हम गेस्ट हाउस पहुंचे तो हमने उसके स्वामी को अपनी दिनचर्या के विषय में बताया तो उसने कहा-कर्कस्टोन इन नहीं जाना था क्योंकि वहां गोस्ट (भूत प्रेतों) का निवास है। हमने हंसकर उत्तर दिया कि चलो सब ठीक है क्योंकि हमें कोई गोस्ट नहीं मिला।